सभ्यता के विकास क्रम
में विभिन्न आकार प्रकार के ईश्वरोँ का उल्लेख मिलता है। अनेक ईश्वर आकाश से उतरते
थे और अलौकिक रूप से चमत्कार दिखाते थे। अनेक ईश्वर अत्याधुनिक ऐसे हथियारों से लैस होते थे, जिसका निर्माण आज के वैज्ञानिक युग में भी हो नहीं
पाया है। प्राचीन काल में मिसाइल का उपयोग और अत्याधुनिक विमानों का प्रचलन का
उल्लेख भी कमोबेश संसार के अनेक पौराणिक कथाओं और स्मारकों में पाया जाता है।
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तस्वीर disclose.tv से साभार
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आज भी अनेक धर्मो में जीवित ईश्वर का उल्लेख किया जाता है। प्राचीन
काल के अनेक पुरातात्विक महत्व के सामानों में यूएफओ आदि का उल्लेख मिलता है
जिसमें वर्तमान समय में देखे जा रहे यूएफओ के साथ आश्चर्यजनक रूप से समानता दिखाई
देती है। ऐसा निष्कर्ष निकलता है कि आज के जमाने में जिन्हेँ आदमी के रूप में
अवतरित ईश्वर या जीवित ईश्वर के रूप में उल्लेख किया जाता है वे वास्तव में दूसरे
ग्रह के एलियंस हुआ करते थे।
दुनिया के अनेक सभ्यताओं में जिन्हें ईश्वर के रूप में पूजा जाता
है वे वास्तविक रुप में दूसरे ग्रह के एलियंस हो सकते हैं अर्थात वे प्राकृतिक
ईश्वर नहीं है और उनका भी जन्म और मृत्यु होता है। ईश्वर की परिकल्पना हर देश और
समाज में अलग-अलग रूप में हुआ करता रहा है और इस कल्पना और परिकल्पना की जिद्द मेँ
सँसार मेँ अनंत संघर्ष का इतिहास मिलता है। आज का युग वैज्ञानिक आविष्कारों का युग
है।
आज ईश्वर की परिकल्पना के संबंध में वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने की
बहुत जरूरत है। धार्मिक दृष्टिकोण को वैज्ञानिक दृष्टिकोण में बदलने से देश और
समाज में चल रहे अनेक झगड़े और समस्याओँ को सुलझाया जा सकता है। नवीन ज्ञान का
क्षेत्र निरंतर रूप से विस्तारित हो रहा है। अंधकार युग में सच मानी गई बातें
सचहीन साबित होती रहीं हैं। विज्ञान पक्षपातहीन होता है और उसका लक्ष्य प्रकृति के
अंतिम तह तक की यात्रा है।
क्या पता इसी
प्रक्रिया में किसी दिन कोई विराट विश्वशक्ति हमारे पास आए और नफासत से कहे ''कहिए जनाब कितने पृथ्वी, सूरज, गैलेक्सी और युनिवर्स बना दूँ ? "