लल्लन के घर एक
बाबाजी आये।
घर मे, जब दान-दक्षिणा हो गया और बाबाजी ने श्रद्धालुओं
को आशीर्वाद दे दिया। तब पिताजी को याद आया कि लल्लन ने आशीर्वाद नहीं लिया।
पिताजी ने तुरन्त लल्लन को आवाज दी। लल्लन हाजिर हो गया।
पिताजी - "बेटा
ये बाबाजी बहुत पहुँचे हुए हैं, इनसे आशीर्वाद ले
लो।"
लल्लन -
"पिताजी! मैं आशीर्वाद तो लूँगा। उसके पहले बाबाजी को मेरा शंका समाधान करना
होगा।"
बाबाजी तैयार हो
गए...
लल्लन - "आपके
हिसाब से सृष्टि और इंसानों को किसने बनाया है?"
बाबाजी - "बेटा!
इसमें भी पूछने की बात है। सबको पता है, ईश्वर
ने ही ये सृष्टि, चांद-तारे, पृथ्वी और
इंसानों को बनाया है।"
लल्लन -
"नास्तिकों को भी?"
बाबाजी एकदम सकपका
गए। उनको श्रद्धालुओं के घर ऐसे सवाल की उम्मीद न थी। फिर भी बोले..
" हाँ, नास्तिकों को भी। लेकिन.."
"लेकिन
क्या बाबाजी?"
"बेटा!
सच तो यह है कि नास्तिक भटके हुए इंसान हैं।"
लल्लन - "ईश्वर
की मर्जी से?"
बाबाजी -
"नहीं।"
"...तो क्या उनपर ईश्वर की मर्जी नहीं चलती?"
"ऐसा
न कहो बेटा।"
लल्लन -
"...जिनको ईश्वर ने ही बनाया और उन्होंने ईश्वर को ही खारिज कर दिया। इससे
क्या समझा जाय?"
बाबाजी लल्लन के पिता
को देखते हुए..
"आपका
बच्चा नादान है। ईश्वर से अनजान है।"
उधर पिताजी लल्लन को
भला-बुरा कहने लगे।
"तुम
सुधरने वाले नहीं हो।"
ईधर बाबाजी..
लल्लन को बिना
आशीर्वाद दिये आराम से निकल लिये।
– शेषनाथ वर्णवाल