डाक्टर अब्राहम कोवूर
दुनिया के प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक एवं सच्चे अर्थों में तर्कशील व्यक्ति थे। उन्होंने अपना सम्पूर्ण
जीवन अलौकिक घटनाओं के पीछे के सत्य की खोज में व्यतीत कर दिया। उन्होंने लगभग पचास वर्षों
तक हर प्रकार के मानसिक, अर्ध मानसिक एवं आत्मिक
चमत्कारों का गहराई से अध्ययन किया और इस निष्कर्ष तक पहुंचे कि इन बातों में लेश
मात्र भी सत्य नहीं होता। इस संसार के मनोचिकित्सकों में वह अकेले ऐसे व्यक्ति थे, जिनको इस क्षेत्र में खोज करने के फलस्वरूप पीएचडी की डिग्री प्राप्त हुई। अमेरिका की ‘यूनिवर्सिटी ऑफ़ मिनेसोटा’ ने मनोविज्ञान एवं ऐसे ही अन्य चमत्कारों की खोज के फलस्वरूप उन्हें पीएचडी
की डिग्री प्रदान की। डॉ. कोवूर का कहना है कि जो व्यक्ति अपने पास
आत्मिक या अलौकिक शक्तियां होने का दावा करता है, वह या
तो धूर्त है या मानसिक रोगी। उनका कहना है कि न तो कोई अलौकिक शक्ति वाला पैदा हुआ है, और न ही किसी के पास अलौकिक शक्ति है। उनकी
सत्ता सिर्फ धर्म ग्रंथों और सनसनी फ़ैलाने वाले समाचार पत्रों के पन्नों तक ही
सीमित होती है।
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डॉ. अब्राहम कोवूर |
केवल डॉ कोवूर ही एशिया के
एकमात्र ऐसे वैज्ञानिक थे जिन्हें अमेरिका के जैव विकास विभाग ने भारतीय समुद्र
एवं खाड़ी के अन्य देशों के समुद्रों में ऐसी वस्तुएं खोजने का निमंत्रण दिया था
जिनसे जैव विकास की खोज में हो रही त्रुटियों को पूरा किया जा सके। परन्तु उनकी पत्नि की
लम्बी बीमारी और बाद में म्रत्यु के कारण उन्हें यह निमंत्रण अस्वीकार करना पड़ा। डॉ कोवूर ने दूर दूर तक
यात्रा की और बहुत से देशों में विशाल जनसमूह को संबोधित किया। बहुत से केसों के बारे में
उनकी पड़ताल दुनिया की अलग अलग पत्र–पत्रिकाओं में प्रकाशित हो
चुकी हैं। उनके
एक केस की सत्य कथा पर मलयालम भाषा में एक फिल्म का निर्माण भी हो चुका है। एक तमिल नाटक ‘नम्बीकाई’ जो विशाल जनसमूह के आगे कई बार प्रदर्शित किया जा चुका है, भी उनके केसों में से एक पर आधारित है।
डाक्टर अब्राहम कोवूर, जिन्होंने अन्धविश्वास के
प्रति लोगों को सचेत करने में अपना सारा जीवन समर्पित कर दिया, का जन्म 10 अप्रैल, 1898 में केरल के एक शहर ‘तिरुवाला‘ में हुआ। डॉ कोवूर के शब्दों में,“आज से 75 वर्ष पूर्व मैंने केरल की सुन्दर भूमि पर
सीरिया के एक ईसाई परिवार में जन्म लिया। मैं एक ईसाई का पुत्र था
और मेरा जन्म भौगोलिक और जीव वैज्ञानिक घटना थी। यह न टो मेरी इच्छा के
फलस्वरूप था और न ही मेरा इसपर कोई अधिकार था। जब मैंने होश संभाला तो
मैंने उतने ही सौंदर्य से परिपूर्ण देश श्रीलंका को अपना देश एवं तर्कशीलता को
अपने दर्शन के रूप में चुन लिया।“ डॉ कोवूर के पिता ‘रैव कोवूर‘ एक पादरी थे और खुद का एक स्कूल भी चलाते थे! बालक
कोवूर ने अपने स्कूल की पढाई अपने पिता के स्कूल में ही पूरी की, और उच्च शिक्षा के लिए अपने छोटे भाई ‘डॉ बहिनान
कोवूर‘ के साथ कोलकाता आ गए। उन्होंने बंगवासी कालेज, कलकत्ता से जीव विज्ञान और वनस्पति विज्ञान में निपुणता प्राप्त कर ली।
डॉ कोवूर ने सी.एम्.सी. कोलेज कोट्टायम में दो वर्ष तक सहायक प्रोफेसर के पद पर कार्य किया फिर 1928 में जाफना (श्रीलंका का एक नगर) के केन्द्रीय कालेज के
प्रिंसिपल ‘पी.टी. कैश‘ के निमंत्रण पर वह जाफना चले गए। जाफना में केन्द्रीय कालेज
में डॉ कोवूर को अपने प्रथम वर्ष में ही अंतिम वर्ष के विद्यार्थियों को वनस्पति
विज्ञान से साथ ही बाइबिल पढ़ाने के लिए कहा गया। जब कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी
का परिणाम घोषित हुआ, तो उनके सभी विद्यार्थी अच्छे अंक
लेकर पास हो गए। मगर अगले वर्ष डॉ कोवूर को बाइबिल का विषय देने से मना कर दिया गया! जब उन्होंने प्रिंसिपल से इसका कारण पूछा तो प्रिंसिपल ने मुस्कुराकर जवाब
दिया, “डॉ कोवूर मैं जनता हूँ कि आपने बाइबिल का बहुत
अच्छा परिणाम निकाला है लेकिन आपके सभी विद्यार्थियों का धर्म से विश्वास उठ गया
है।“ 1943 में जब पी.टी. कैश रिटायर
हो गए तो डॉ कोवूर ने भी जाफना का केन्द्रीय कालेज छोड़ दिया और थॉमस कालेज माउंट
लावीनीय में नौकरी कर ली। 1959 में वह थरशटन कालेज कोलम्बो से विज्ञान विभाग
के अध्यक्ष पद की सेवा से मुक्त हो गए।
नौकरी से रिटायर होनें के
बाद डॉ कोवूर ने अपनी जिंदगी भर के आत्मिक एवं मनोवैज्ञानिक चमत्कारों के
अनुसंधानों के बारे में लिखना व बोलना शुरू कर दिया। सभी बच्चों की तरह उनके लिए भी बचपन में अपने
माता-पिता की तरफ से धर्म एवं झूठे विश्वासों से बचना पहाड़ जैसा मुश्किल कार्य था! उसी गलती को दोहराने से
बचने के लिए डाक्टर कोवूर ने अपने इकलौते पुत्र, एरिस
कोवूर को धर्म के नाम पर ऐसे गलत विचारों की शिक्षा न देने का फैसला किया। अपने पिता के पदचिन्हों पर
चलते हुए प्रोफेसर एरिस कोवूर आज फ़्रांस और क्यूबा की सरकारों के अधीन विज्ञान में
खोज करने का कार्य कर रहे हैं।
डा कोवूर की पत्नी भी अपने
पति के जैसे ही थीं, व
अपने पति के कार्यों को पूर्ण समर्थन देती थीं। 1974 में उनकी पत्नी की म्रत्यु नें श्रीलंका में सनसनी फैला दी। वहां की संसद में उनकी
म्रत्यु पर यह सन्देश पढ़ा गया,“श्रीमती अक्का कोवूर, अपनी आत्मा या रूह को छोड़े बगैर चल बसीं, ताकि
वहां के अन्धानुकरण करने वाले लोग फिकर में न पड़ें।“ उनकी इच्छा के अनुसार
उनके शरीर को श्रीलंका के कोलम्बो विश्वविद्यालय के मैडिसन विभाग में दे दिया गया। उनको जलने, दफ़नाने या फूलों से लादने की कोई रसम नहीं हुई।
50 सालों से भी ज्यादा समय तक अनेक योगी, ऋषि, सिद्ध पुरुष, ज्योतिषी, जादू–टोने वाले एवं हस्त रेखा निपुणों से मिलने के
बाद और भिन्न–भिन्न प्रकार की आश्चर्यजनक घटनाओं और
रहस्यपूर्ण व्यक्तियों के तथाकथित चमत्कारों का का बड़ी गहराई से विश्लेषण करने के
बाद वे अपने बचपन में सिखाये गए बहुत से भ्रमों से बचनें में सफल हुए! ये ऐसे भ्रम होते हैं जो बचपन में उपदेश द्वारा बच्चों के दिमाग में भर
दिए जाते हैं, और जिनसे इस समाज में रहते हुए बचा नहीं
जा सकता। ये भ्रम भूत–प्रेत, जादू–टोने, देवताओं की नाराजगी, नर्क, राक्षस और श्राप आदि के बारे में होते हैं। चमत्कारों
का अन्वेषक होने के कारण डॉ कोवूर ने भोले भाले लोगों को भूत, प्रेत, ज्योतिष,
जादू-टोना, करने वाले हस्तरेखा देखने वाले, काले जादू व अन्य अलौकिक शक्ति वालों
से हमेशा बचाने की कोशिश करते रहे। उनके अनुसार,
“वे घटनाएं, वे सैकड़ों भूत घरों एवं प्रेत आत्माओं, जिन के
बारे में मैंने खोज की, हर एक में मैंने किसी न किसी
मनुष्य को ही इन आश्चर्यजनक घटनाओं को करने का जिम्मेदार पाया। ऐसे अजीबो–गरीब काम वे या टो किसी मानसिक
बीमारी के कारण या शरारत के कारण किया करते थे। मैंने बहुत से मानसिक
रोगियों को, जिनमें प्रेत आता था, ठीक किया है। मैंने उनका इलाज उनमें से प्रेत
निकालकर नहीं बल्कि उनको हिप्नोटाइज करके उनके दिमाग से गलत विचारों को दूर करके
किया है! मेरा अनुभव है कि कुछ पुजारियों या साधु–संतों को संयोगवश जो सफलताएं मिलती हैं वे केवल पूजा, प्रार्थना या मन्त्रों का रोगी के मन के ऊपर हिप्नोटिक प्रभाव के कारण ही
प्राप्त होती हैं! भोले–भले लोग
इन इलाजों को भूत–प्रेत और देवी–देवताओं
के साथ जोड़ देते हैं।“
हम में से लगभग हर व्यक्ति
निम्नलिखित बातों में विश्वास करता है– शुभ समय, लक्की
नंबर, शगुन, बुरी नजर, बुरी जुबान, शुभ रंग, शुभ रत्न, जादू–टोने, ज्योतिष, हस्त–रेखा, अलौकिक शक्ति, प्रेतों का आना, प्रार्थनाओं की अलौकिक शक्तियां, पूजा, मंत्र, बलि, धार्मिक
यात्राएं, देवताओं से भेंट, पवित्र
राख, पवित्र आदमी, पवित्र
स्थान, पवित्र वस्तु, पवित्र
समय, टेलीपैथी एवं अन्य बहुत से वहम। डॉ कोवूर की खोज नें
उन्हें इस सत्य से साक्षात्कार करवाया कि अन्धानुकरण करने वाले व्यक्तियों में से
ऐसे वहम व विश्वासों की जड़ें रहस्यमयी व्यक्तियों ने अपनी आय के साधन को बनाने के
लिए लगायी हैं। पूजा, प्रार्थना, भेंट और बलि का प्रभाव तो
अन्धविश्वासी लोगों में मनोवैज्ञानिक ढंग से होता है। ये सारी बातें मनुष्य के
दिमाग में नींद वाली दवाइयों जैसा प्रभाव डालती हैं। डॉ कोवूर के अनुसार
ज्यादातर मानसिक बीमारियों का कारण तो देवताओं, शैतानों
का अन्धानुकरण करने वाले लोगों में तथाकथित पवित्र वस्तुओं की अपवित्रता इत्यादि
के बारे में पैदा किया डर ही होता है। डॉ कोवूर कहते हैं कि, “मैंने अपनी खोज का
प्रचार कार्य सिर्फ नौकरी से रिटायर
होने के उपरांत ही शुरू किया पहले
मैं अपनी खोजों का प्रचार करने से इसलिए रुका रहा क्योंकि अपनी रोजी
रोटी ऐसी धार्मिक संस्थाओं में कामकर
के कमा रहा था जिनका
कार्य ही अन्धविश्वास का प्रचार
करना था।“
डॉ कोवूर ने दो वर्षों तक
हस्त रेखा विद्या व ज्योतिष विद्या सीखा, मगर इस पढाई ने उन्हें इसे व्यर्थ
घोषित करनें में ही अधिक सहायता दी। उन्होंने अपने हर कार्य
अशुभ दिनों व बुरे शगुनों के साथ शुरू किया। प्रेतों की तलाश में वे
प्रेत–घरों में सोये। वे और उनकी पत्नी, आधी रात को प्रेतों की
खोज में कब्रिस्तान भी गए। उन्होंने कब्रिस्तान से श्रीलंका के रेडियो पर भी बोला! सिंहली, तमिल और अंग्रेजी समाचार पत्रों के
माध्यम से उन्होंने तीन अवसरों पर जादू–टोने वालों को इस बात
की चुनौती दी कि वे उन्हें अपने जादू–टोने से निश्चित समय
में मार दे। तीनों
ही अवसरों पर उन्हें डाक से बहुत से जादू–टोने प्राप्त हुए, जिनमें कुछ चाँदी, तांबे की पत्तियों और कुछ कागज के
थे। वे कहते हैं, “लंका के लगभग सभी भागों के तांत्रिकों द्वारा भेजे गए इन टोनों के बावजूद
मैं आजतक बिलकुल तंदुरुस्त और ठीक हूँ, और जब अन्य
मनुष्यों की तरह मर जाऊंगा तो ये टोने वाले यह अवश्य कहेंगे की मैं उनके टोनों के
देर के प्रभाव के कारण मरा हूँ।“
अंत में उन्होंने
पाखंडियों के धोखे एवं गप्पों को इस चुनौती से नंगा किया कि वे अपने चमत्कारों को
बिना धोखे वाली स्थितियों में करके दिखाएं और बदले में एक लाख रूपए ले जाएँ। आज से 70 साल पहले एक लाख रूपए की कीमत आज के 40 करोड़ रूपए से भी अधिक रही होगी। उन्होंने कहा,“मैं इनके खतरनाक परिणामों को भी जनता हूँ! यदि
दुनिया में एक भी व्यक्ति अलौकिक शक्ति वाला हो, तो
मुझे अपना बुढ़ापा अनाथालय में व्यतीत करना पड़ सकता है। मुझे पहले भी यकीन था, और अब भी यकीन है की मैं इन शर्तों में एक भी पैसा नहीं दूंगा, इसलिए मैं अपनी चुनौती को अपनी म्रत्यु तक खुला रख रहा हूँ।”
डॉ कोवूर ने लोगों द्वारा
बताई हुई बहुत सी भूत–प्रेत व
अलौकिक लगने वाली घटनाओं की पड़ताल की है और लोगों की समस्याएं सुलझाई हैं।