साथियों! आज कुछ
विचार इस बात पर किया कि आख़िर किस तरीके से हम इस देश में लोगों को पाखंडो,
अंधविश्वासों से निकाल सकते हैं और लोगों को एक बंधी हुई मानसिकता
से आज़ाद होने में सहायता दे सकते हैं।
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तस्वीर ‘एसबीएस’ से साभार |
आप लोगों ने बहुत से लोगों से भगवान के होने या न होने की बहस की होगी और यदि आपने कभी उस बहस का अवलोकन किया हो तो आप ये जानेंगे कि सबसे मुश्किल होता है वर्णव्यवस्था को मानने वाले सबसे ऊंचाई पर बैठे हुए लोगों को समझाने में कि भगवान, इश्वर, अल्लाह का कोई अस्तित्व नहीं है। और इसके विपरीत सबसे नीचे वाली जाति में आने वाले लोगों को समझाना काफ़ी आसान होता है।
हाँ,
इसमें शिक्षा का बहुत अधिक महत्त्व है
किन्तु हम उसकी चर्चा थोड़ी देर बाद करेंगे।
अब इन नीचे आने वाले
वर्गों में बहुजन हैं जो बाबासाहेब अम्बेडकर से काफ़ी प्रभावित हैं। साथ ही कुछ ऐसे
धर्म हैं जो नास्तिकता के आधार पर चलते ज़रूर हैं किन्तु एक नियम समूह से जुड़े रहते
हैं। नियम समूह जैसे ये न खाओ, वो न खाओ,
ये न करो, वो न करो, आदि।
जिसके कारण ये नास्तिक होते हुए भी लोगों को वास्तविक आज़ादी नहीं दे पाते। इनमें
बौद्ध और जैन जैसे धर्म आते हैं।
अब दोस्तों,
हमें इन्हीं सब जानकारियों का फ़ायदा उठाना पड़ेगा। हमारे देश में
अनुसूचित जातियां और जनजातियां लगभग देश की जनसँख्या का 25% निर्माण करती हैं।साथ ही 0.7% बौद्ध धर्म के अनुयायी और लगभग 0.3% जैन धर्म के अनुयायी इस जनसँख्या के हिस्से हैं। कुछ नहीं तो,
कम से कम 20%
से 22% जनसँख्या को हम अपना टारगेट बना सकते हैं। दलितों को वर्णव्यवस्था
के बारे में समझाएं और उसके माध्यम से उनको सदियों से भगवान के नाम पर होने वाले
ज़ुल्मों के बारे में बताएं। उन्हें बताएं किस तरीके से ऊँची जाति वालों ने उनको
भगवान के नाम पर बेवकूफ बनाया है। ये अवश्य उन्हें सोचने पर मजबूर करेगा।
बौद्ध और जैन धर्म के अनुयायी नास्तिकता को पहले से ही मानते और समझते हैं तो उन्हें सिर्फ़ किसी रूल बुक या नियम समूह का पालन न करने की बात समझाने कि कोशिश करनी है। उन्हें आज़ादी दिखाइए।
अब आते हैं शिक्षा पर। तो ये जो उच्च जाती वर्ग है,
ये अपने घमंड में डूबा हुआ है। इस वर्ग को समझाना बहुत कठिन है ।
कोशिश ज़रूर करते रहें लेकिन इनकी मानसिकता में अच्छी शिक्षा से ही बदलाव आ सकता
है। हमारे देश में शिक्षा का स्तर बहुत ही घटिया किस्म का है। यहाँ शिक्षा एक
व्यवसाय बनकर रह गया है । और साथ ही माँ बाप अपने बच्चों को सिर्फ़ अच्छी नौकरी के
लिए पढ़ाते हैं। विद्यालयों में भी नैतिकता की शिक्षा नहीं दी जाती और इसलिए
विद्यार्थी महज़ किताबी कीड़ा बन के रह जाता है। उसे लाख रुपये महीने वाली नौकरी तो
मिल जाती है लेकिन नैतिकता, समानता, उदारतावाद,
नारीवाद जैसी विचारधाराओं का स्वाद नहीं मिल पाता।। तो साधारण सी
बात है कि इसका हल शिक्षा के स्तर को बढ़ाने में है।
कैसे बढ़ेगा?
देश की सरकार ही इसमें कुछ कर सकती है और इस समय हमारे देश में
भ्रस्टाचारी, लोगों को बेवकूफ रखने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे।
तो आपको ऐसी सरकार को चुनना होगा जो सही में शिक्षा क्षेत्र में कुछ कर रही है।
फिलहाल AAP इस देश की एकमात्र पार्टी है जो इस देश को सही दिशा
दे सकती है। दिल्ली में मनीष सिसोदिया जी के काम से शायद ही कोई अपिरिचित होगा।
कक्षा बारहवीं तक की शिक्षा वहां मुफ्त कर दी गयी है। सरकारी विद्यालयों का
कायापलट किया जा रहा है। नए प्रगतिशील पाठ्यचर्या लायी जा रही है। शिक्षकों को
विदेश भेजा जा रहा है ट्रेनिंग के लिए। बाकि सभी क्षेत्रों में भी बहुत काम किये
जा रहे हैं
लेकिन यहाँ मैं सिर्फ़
शिक्षा की ही बात करना ज़रूरी समझता हूँ।
अब यदि हम ये समझते
हैं कि हमें और लोगों की विचारधारा को बदलना है तो हम ये काम बिना सरकार की सहायता
के नहीं कर सकते। हमें संतुष्ट होना चाहिए कि हमारे पास कोई है जो भ्रस्ट तंत्र के
ख़िलाफ़ जाकर सुधार करने को तत्पर है। ...तो इनका साथ दीजिये।
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